हमारे प्राचीन ग्रंथ चारो वेदों, स्कंदपुराण,एवं लिंग पुराण के अनुसार जीवों के उतपत्ति के पूर्व पृथ्वी आग का गोला थी जो कि सूर्य गृह से अलग होने के पश्चात साइक्लिक मूवमेंट के कारण ठंडी होती चली गई ,मौसम परिवर्तन के कारण जब पृथ्वी पर पहली बरसात हुई तब एक जोरदार ध्वनि का उच्चारण हुआ जिसे ओमकार नाद के रूप में जाना गया।
ये ओमकार नाद ही पराब्रह्म सदाशिव के रूप में ब्रह्मऋषि सप्तऋषि एवम शनकादिक ऋषियों द्वारा परिभाषित किये गए ।इन निराकार पराब्रह्म शिव ने साकार श्री विष्णुजी एवम साकार ब्रम्हाजी को उतपन्न कर ब्रम्हाजी को सृष्टि निर्माण एवम श्री विष्णु को पालनहार करने के जिम्मेदारी से नवाजा।लेकिन इन दोनो कोअपने कर्तव्य निर्वहन में आने वाली कठिनाइयों के निवारण के लिये पराब्रह्म शिवजी से सम्पर्क करने के लिए दीर्घकाल कठिन तप करना पड़ता था अतः ब्रह्माजी एवम श्री विष्णु के निवेदन करने पर शिवरात्रि के दिन पराब्रह्म सदाशिव ने सशरीरभोले शंकर के रूप में काशी अपना अवतरण कर कैलाश पर अपना निवास बना कर अपनी कठोर तप साधना से योग,संगीत ,अघोर विद्या सहित अनन्य गुप्तविद्याओ में स्वयम को पारंगत किया,इसके बाद मानव कल्याण हेतु इन विधाओं के चारो दिशाओं में प्रचार हेतु सप्त ऋषि ,शनकादिक ऋषि मंडल ,ब्रह्मऋषि मंडल, भगवान दत्तात्रेय ओर उनके नो नाथ ऋषि मंडल की सहायता से ये अभियान सतत जारी रखा है ।
आज भी इनकी नयी पीढियां चारो मठ के शंकराचार्य के रूप में इन गुप्त विद्याओ के प्रचार प्रसार के माध्यम से मानव कल्याण कैसे किया जाय ये जनसाधारण में प्रचारित करती रहती है।
इन्ही गुप्त विधाओं में ये भी बताया गया है कि हम जो पार्थिव शिवलिंग की उपासना दूध,दही घी के षोडशोपचार उपासना करते है वो प्रथमिक स्तर की शिवोपासना है जबकि वैज्ञानिक शिवलिंग सदाशिव ने ब्रम्हांड में रेखांकित कर ये संदेश दिया है कि शिवोपासना हर मानव के मोक्ष के लिए सक्षम है ।और इस पवित्र वैज्ञानिक शिवलिंग का पॉकेट एडिशन ही सुसुप्त कुंडलिनी के रूप में हर मानव के शरीर मे चक्रों के रूप में विद्यमान किया है …इस लिंक पर देखिए इसकी विस्तृत जानकारी …और अपने लाइक एवम कमेंट्स करके हमे अपनी पसंद-नापसन्द से अवगत कराएं,साथ ही अपनी शंकाओं के समाधान के लिए भी आप कमेंट करें