राष्ट्रीय कल्चर की निगाह में…मानव समाज के हीरो…पं. महेंद्र दीक्षित

2,575 पाठको ने इस आलेख को सराहा हैं

राष्ट्रीय कल्चर ने अपने वेब पोर्टल के एक लाख नो हज़ार दर्शकों के लिए,फेसबुक एवम राष्ट्रीय कल्चर पेज के संयुक्त रूप से 8000एवम वाट्स एप के अनगिनत दर्शकों के लिए हमने वादा किया था की हम शीघ्र समाज को नयी दिशा देने वाले विलक्षण प्रतिभाशाली प्रतिभाओ से रूबरू करवाएंगे।

हमने अपने वादे का श्री गणेश करते हुए आज ही अमरनाथजी से वापस आ रहे ,ओर 23 बार बाबा अमरनाथजी की यात्रा करने वाले पं. महेंद्र दीक्षित से हमने बात कर ये समझने का प्रयास किया है कि इतनी दुर्गंम यात्रा करने के क्या लाभ और क्या हानि होती है।इस वार्ता में उन्होंने अमरनाथजी की यात्रा का वर्णन करते हुए बताया कि अमरनाथजी जाने के दो रास्ते है एक रास्ता पहलगाव से चंदनवाड़ी होकर 32 किलोमीटर पैदल यात्रा कर पवित्र गुफा तक जाया जाता है दूसरा रास्ता बालटाल से होकर पवित्र गुफा जाता है ये 18 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है लेकिन ये रास्ता अत्यंत दुर्गम है

पहलगाव से 32किलोमीटर पड़ यात्रा से अमरनाथजी की पवित्र गुफा रास्ता…

पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 16 किलोमीटर की दूरी पर है. यह स्थान समुद्रतल से 9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं. यहां रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं. इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है. लिद्दर नदी के किनारे से इस पड़ाव की यात्रा आसान होती है. यह रास्ता वाहनों द्वारा भी पूरा किया जा सकता है. यहां से आगे जाने के लिए घोड़ों, पालकियों अथवा पिट्ठुओं की सुविधा मिल जाती है. चंदनबाड़ी से पिस्सुटॉप जाते हुए रास्ते में बर्फ़ का पुल आता है. यह घाटी सर्पाकार है.

पिस्सू टाप……

चंदनवाड़ी से 3 किमी चढाई करने केबाद आपको रास्ते में पिस्सू टाप पहाडी मिलेगी. जनश्रुतियां हैं कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई, जिसमें देवताओं ने कई दानवों को मार गिराया था. दानवों के कंकाल एक ही स्थान पर एकत्रित होने के कारण यह पहाडी बन गई. अमरनाथ यात्रा में पिस्सु घाटी काफ़ी जोखिम भरा स्थल है. पिस्सु घाटी समुद्रतल से 11,120 फुट की ऊंचाई पर है. लिद्दर नदी के किनारे – किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज़्यादा कठिन नहीं है. पिस्सू घाटी की सीधी चढ़ाई चढते हैं जो शेषनाग नदी के किनारे चलती है. 12 कि. मी. का लम्बा नदी का किनारा शेषनाग झील पर जाकर समाप्त होता है. यही तो नदी का उदगम स्थल है. (यही नदी पहलगाम से नीचे जाकर झेलम दरिया में मिल जाती है)

शेषनाग…..

पिस्सू टाप से 12 कि.मी. दूर 11,730 फीट की ऊंचाई पर शेषनाग पर्वत है, जिसके सातों शिखर शेषनाग के समान लगते हैं. यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है. यहां तक की यात्रा तय करने में 4-5 घंटे लगते हैं. यहीं पर पिस्सु घाटी के दर्शन होते हैं. यात्री शेषनाग पहुंच कर तंबू / कैंप लगाकर अपना दूसरा पडाव डालते हैं. यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की ख़ूबसूरत झील है. जिसे शेषनाग झील कहते हैं. इस झील में झांक कर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया.
यह झील क़रीब डेढ़ किलोमीटर लंबाई में फैली है. किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं. तीर्थयात्री यहां

रात्रि विश्राम करते है और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं. शेषनाग और इससे आगे की यात्रा बहुत कठिन है. यहां बर्फीली हवाएं चलती रहती हैं. शेषनाग से पोषपत्री तथा फिर पंचतरणी की दूरी छह किलोमीटर है. पोषपत्री नामक यह स्थान 12500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. पोषपत्री में विशाल भंडारे का आयोजन होता है. यहां भोजन, आवास, चिकित्सा सुविधा, ऑक्सीजन सलैंडर आदि की सुविधा उपलब्ध रहती है.

पंचतरणी…..

पहलगम नदी अमरनाथ
शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है. मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता है, जिनकी समुद्र तल से ऊंचाई क्रमश: 13,500 फुट व 14,500 फुट है. इस स्थान पर अनेक झरनें, जल प्रपात और चश्में और मनोरम प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं. महागुणास चोटी से नीचे उतरते हुए 9.4 कि.मी. की दूरी तय करके पंचतरिणी पहुंचा जा सकता है. यहां पांच छोटी – छोटी सरिताएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है. पंचतरणी 12,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. यह भैरव पर्वत की तलहटी में बसा है. यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची – ऊंची चोटियों से ढका है.
बलटाल से अमरनाथ……

जम्मू से बलटाल की दूरी 400 किलोमीटर है. यह मार्ग थोड़ा कठिन है, इस रास्ते में जोखिम भी ज़्यादा हैं. इस मार्ग की लंबाई 15 किलोमीटर है. जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर पर्यटक स्वागत केंद्र की बसें आसानी से मिल जाती है. बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं.

अमरनाथ गुफ़ा….
पूर्णमासी सामान्यत भगवान शिव से संबंधित नहीं है, लेकिन बर्फ़ के पूरी तरह विकसित शिवलिंग के दर्शनों के कारण श्रावण पूर्णमासी (जुलाई – अगस्त) का अमरनाथ यात्रा के साथ संबंध है और पर्वतों से गुजरते हुए गुफ़ा तक पहुंचने के लिए इस अवधि के दौरान मौसम काफ़ी हद तक अनुकूल रहता है. इसलिए बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए तीर्थयात्री अमूमन ‘मध्य जून, जुलाई और अगस्त ( आषाढ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षा बंधन तक पूरे सावन महीने)’ में आते हैं.
जुलाई-अगस्त माह में मॉनसून के आगमन के दौरान पूरी कश्मीर वादी में हर तरफ हरियाली ही हरियाली ही दिखती है. यह हरियाली यहां की प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाती है. यात्रा के शुरू और बंद होने की घोषणा श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड करती है. इस यात्रा के साथ मात्र हिन्दुओं की ही नहीं बल्कि मुस्लिम और अन्य धर्म की श्रद्धालुओं की भी आस्था जुड़ी है.
छड़ी मुबारक
रक्षाबंधन के दिन पवित्र अमरनाथ धाम में भगवान शिव का विधिवत पूजन कश्मीर के साधु समाज के प्रमुख और गुफ़ा के मुख्य पुजारी करते हैं. कुछ वर्ष पहले तक साधुओं की टोली के साथ यात्रा की प्रतीक छड़ी मुबारक को श्रीनगर से बिजबेहरा, पहलगाम, चंदनबाड़ी, शेषनाग, पंजतरणी के रास्ते से अमरनाथ लाया जाता था. पर अब छड़ी मुबारक की यह यात्रा जम्मू से शुरू होकर परंपरागत मार्ग से होते हुए सीधे पहलगाम तक होती है.

अमरनाथ जाने का रास्ता
चंदनबाड़ी…..
पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से 16 किलोमीटर की दूरी पर है. यह स्थान समुद्रतल से 9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं. यहां रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं. इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है. लिद्दर नदी के किनारे से इस पड़ाव की यात्रा आसान होती है. यह रास्ता वाहनों द्वारा भी पूरा किया जा सकता है. यहां से आगे जाने के लिए घोड़ों, पालकियों अथवा पिट्ठुओं की सुविधा मिल जाती है. चंदनबाड़ी से पिस्सुटॉप जाते हुए रास्ते में बर्फ़ का पुल आता है. यह घाटी सर्पाकार है.
पिस्सू टाप
चंदनवाड़ी से 3 किमी चढाई करने के बाद आपको रास्ते में पिस्सू टाप पहाडी मिलेगी. जनश्रुतियां हैं कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई, जिसमें देवताओं ने कई दानवों को मार गिराया था. दानवों के कंकाल एक ही स्थान पर एकत्रित होने के कारण यह पहाडी बन गई. अमरनाथ यात्रा में पिस्सु घाटी काफ़ी जोखिम भरा स्थल है. पिस्सु घाटी समुद्रतल से 11,120 फुट की ऊंचाई पर है. लिद्दर नदी के किनारे – किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज़्यादा कठिन नहीं है. पिस्सू घाटी की सीधी चढ़ाई चढते हैं जो शेषनाग नदी के किनारे चलती है. 12 कि. मी. का लम्बा नदी का किनारा शेषनाग झील पर जाकर समाप्त होता है. यही तो नदी का उदगम स्थल है. (यही नदी पहलगाम से नीचे जाकर झेलम दरिया में मिल जाती है)
शेषनाग
पिस्सू टाप से 12 कि.मी. दूर 11,730 फीट की ऊंचाई पर शेषनाग पर्वत है, जिसके सातों शिखर शेषनाग के समान लगते हैं. यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है. यहां तक की यात्रा तय करने में 4-5 घंटे लगते हैं. यहीं पर पिस्सु घाटी के दर्शन होते हैं. यात्री शेषनाग पहुंच कर तंबू / कैंप लगाकर अपना दूसरा पडाव डालते हैं. यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की ख़ूबसूरत झील है. जिसे शेषनाग झील कहते हैं. इस झील में झांक कर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया.
यह झील क़रीब डेढ़ किलोमीटर लंबाई में फैली है. किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं. तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते है और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं. शेषनाग और इससे आगे की यात्रा बहुत कठिन है. यहां बर्फीली हवाएं चलती रहती हैं. शेषनाग से पोषपत्री तथा फिर पंचतरणी की दूरी छह किलोमीटर है. पोषपत्री नामक यह स्थान 12500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. पोषपत्री में विशाल भंडारे का आयोजन होता है. यहां भोजन, आवास, चिकित्सा सुविधा, ऑक्सीजन सलैंडर आदि की सुविधा उपलब्ध रहती है.
पंचतरणी
पहलगम नदी अमरनाथ
शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है. मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता है, जिनकी समुद्र तल से ऊंचाई क्रमश: 13,500 फुट व 14,500 फुट है. इस स्थान पर अनेक झरनें, जल प्रपात और चश्में और मनोरम प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं. महागुणास चोटी से नीचे उतरते हुए 9.4 कि.मी. की दूरी तय करके पंचतरिणी पहुंचा जा सकता है. यहां पांच छोटी – छोटी सरिताएं बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है. पंचतरणी 12,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. यह भैरव पर्वत की तलहटी में बसा है. यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची – ऊंची चोटियों से ढका है.
बलटाल से अमरनाथ
जम्मू से बलटाल की दूरी 400 किलोमीटर है. यह मार्ग थोड़ा कठिन है, इस रास्ते में जोखिम भी ज़्यादा हैं. इस मार्ग की लंबाई 15 किलोमीटर है. जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर पर्यटक स्वागत केंद्र की बसें आसानी से मिल जाती है. बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफ़ा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं.
अमरनाथ गुफ़ा
पूर्णमासी सामान्यत भगवान शिव से संबंधित नहीं है, लेकिन बर्फ़ के पूरी तरह विकसित शिवलिंग के दर्शनों के कारण श्रावण पूर्णमासी (जुलाई – अगस्त) का अमरनाथ यात्रा के साथ संबंध है और पर्वतों से गुजरते हुए गुफ़ा तक पहुंचने के लिए इस अवधि के दौरान मौसम काफ़ी हद तक अनुकूल रहता है. इसलिए बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए तीर्थयात्री अमूमन ‘मध्य जून, जुलाई और अगस्त ( आषाढ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षा बंधन तक पूरे सावन महीने)’ में आते हैं.
जुलाई-अगस्त माह में मॉनसून के आगमन के दौरान पूरी कश्मीर वादी में हर तरफ हरियाली ही हरियाली ही दिखती है. यह हरियाली यहां की प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाती है. यात्रा के शुरू और बंद होने की घोषणा श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड करती है. इस यात्रा के साथ मात्र हिन्दुओं की ही नहीं बल्कि मुस्लिम और अन्य धर्म की श्रद्धालुओं की भी आस्था जुड़ी है.
छड़ी मुबारक
रक्षाबंधन के दिन पवित्र अमरनाथ धाम में भगवान शिव का विधिवत पूजन कश्मीर के साधु समाज के प्रमुख और गुफ़ा के मुख्य पुजारी करते हैं. कुछ वर्ष पहले तक साधुओं की टोली के साथ यात्रा की प्रतीक छड़ी मुबारक को श्रीनगर से बिजबेहरा, पहलगाम, चंदनबाड़ी, शेषनाग, पंजतरणी के रास्ते से अमरनाथ लाया जाता था. पर अब छड़ी मुबारक की यह यात्रा जम्मू से शुरू होकर परंपरागत मार्ग से होते हुए सीधे पहलगाम तक होती है.

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