कोविड-19! निष्कर्ष ! अतार्किक, अविवेक पूर्ण एवं परस्पर विरोधाभासी! परंतु सत्यता के निकट! ■■राजीव खंडेलवाल■■■

2,912 पाठको ने इस आलेख को सराहा हैं



कोरोनावायरस संक्रमण काल से एक दो चीजें अच्छी और बुरी दोनों उभर के सामने आई हैं। उस पर भी आपके ध्यान देने की आवश्यकता है। सर्वप्रथम “जानलेवा परसेप्शन”. (अनुभूति) के साथ फैल रही कोरोनावायरस के बावजूद कालाबाजारी करने वाले लोग भी इस आपदा काल में भी प्रधानमंत्री के “आपदा को अवसर” बनाने के “मंत्र” (जबकि प्रधानमंत्री जी ने “सोउद्देश्य अवसर” की बात कही थी) का शाब्दिक अक्षरस: पालन करते हुए दूसरों की जान की परवाह किए बिना यहां भी नहीं चुके हैं। प्रारंभ में कोविड टेस्ट इंजेक्शन, फिर वैक्सीन, रेडमीसेलर इंजेक्शन व अन्य आवश्यक एंटीबायोटिक दवाइयां और अब ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी के साथ एंबुलेंस, टैक्सी, बस भाड़ा मे कई गुना मुनाफाखोरी बढ़ गई है। बाकी अन्य सामान्य कालाबाजारी को छोड़ भी दे तो। आपदा में विश्व के अनेक देशों सहित हमारा दुश्मन नंबर एक पड़ोसी देश पाकिस्तान तक ने सहायता के हाथ आगे बढ़ा दिए है परंतु इन काला बाजारियो की काली करतूतें मानवता के नाम पर एक अमिट काला धब्बा है।
“दो गज की मानव दूरी” (ह्यूमन डिस्टेंस) को सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंस) कहने का शायद आशय यही है कि सामाजिक दूरी बनाए रख आप सहजता से आवश्यक 2 गज की मानव दूरी को बनाए रख सकते हैं। कोविड-19 के पहले भी विभिन्न बीमारियों के इलाज व ऑपरेशन के चलते नर्सिंग होम और डॉक्टरों के चेंबर भरे रहते थे। आज कोविड-19 के इलाज यह तू अस्पतालों एवं नर्सिंग होम के लगभग 80% बेडस को कोविड सेंटर में बदला जा चुका हैं । बावजूद इसके अन्य बीमारियों के इलाज में किसी प्रकार की कमी की कोई शिकायत लगभग नहीं के बराबर है। शायद यह हमारे स्वास्थ्य तंत्र के रबर के समान लचीले पन का द्योतक तो नहीं है ? जबकि अभी भी देश के मात्र 1% से कुछ ज्यादा ही व्यक्ति कोविड-19 से संक्रमित हो चुके है ।
इस कोरोना काल में विभिन्न उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा तल्ख और कड़ी टिप्पणियां करते समय ऐसे “शब्दों” का प्रयोग किया है, जो शायद आज तक के न्यायिक इतिहास में कभी नहीं हुआ। जैसे “भीख मांगिए”, “उधार लीजिए”, “चोरी कीजिए”, “सरकार चाहे तो जमीन आसमान एक कर सकती है”, “हम सभी जानते हैं देश भगवान भरोसे चल रहा है”, “ऐसा लगता है केंद्र चाहता है कि लोग मरते रहें”, “ऐसा लगता है कि दिमाग का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं हुआ है”, “यह सरासर कुप्रबंधन है” (दिल्ली उच्च न्यायालय) जैसे जुमलो व शब्दों का उपयोग न्यायालयों ने केंद्र व राज्य सरकारों के प्रति किया है। “लटका देंगे”, “आप को अभी कस्टडी में ले लेंगे” जैसे शब्दों का प्रयोग भी न्यायालय ने व्यक्ति विशेषसो के बाबत किया है। “धमकी और चेतावनी” न्यायालयीन भाषा का सामान्य रूप से प्रचलित शब्द हो गया है। जबकि एक सामान्य नागरिक अनावश्यक धमकी और चेतावनी के विरुद्ध ही न्यायालय के पास संरक्षण हेतु जाता है।
कोविड-19 का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह निकला है कि स्वास्थ्य अब “व्यक्तिगत” विषय न रहकर “सामुदायिक” हो गया है। साथ ही कोविड-19 मानसिक बीमारी न होने के बावजूद इससे उत्पन्न वातावरण का प्रभाव शारीरिक व मानसिक दोनों स्तर पर हो रहा है। इस कोविड-19 ने “व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ के माध्यम से हर घर में कुछ सही वह कुछ गलत एक डॉक्टर पैदा कर दिया है। वैसे भी हमारे देश में खासकर ग्रामीण परिवेश में झोलाछाप डॉक्टरों की कमी नहीं है। कोविड-19 में “जन्म मृत्यु व शादी” के व्यक्तिगत सामाजिक अर्थो को ही बदल दिया है । कितना सही या गलत इसका जवाब शायद कुछ समय बाद ही मिल पाए। परिणामों और दुष्परिणाम की यह श्रंखला शायद अनवरत आगे भी चलती रहेगी, जब तक कोविड-19 मौजूद है।

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *