क्या देश धातक स्वास्थ्य बीमारी ‘‘ कोरोना ‘‘ से चल कर ‘‘आर्थिक कोरोना‘‘ की ओर तो नहीं बढ रहा है‘‘…..?
राजीव खण्डेलवाल
( वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष )

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देश में लाॅक डाउन हुये 19 दिन व्यतीत हो चुके है । लेकिन अभी भी हम देश में कोरोना मरीजों की संख्या को कम नही कर पाये है, बल्कि लाॅकडाउन के पूर्व की अवधि की तुलना में उसमे वृध्दि ही हो रही है । इसके कई कारण हो सकते है । एक तो लाकडाउन जिसे 100 प्रतिशत लागू किया जाना चाहिये था उसमे कहीं पर प्रशासन और कहीं पर नागरिकों की असावधानी व गैर जिम्मेदार व्यवहार के कारण लागू होने में कमी हुई है । इस दिशा में 99 प्रतिशत प्रयास भी हमें पूर्ण सफलता नहीं दिला पायेगें । क्योंकि एक संक्रमित व्यक्ति भी लाकडाउन का उल्लघंन करता है तो वह चेन के रूप में 600 से अधिक आदमियों को सक्रमणित कर सकता है । चूंकि उसका टेस्ट नही हूआ है, अतः स्वयं वह भी एक संक्रमित व्यक्ति हो सकता है । अर्थात 100प्रतिशत प्रयास ही,100प्रतिशत सफलता दिलायेगां । दूसरा एक कारण यह भी हो सकता है कि पूर्व में टेस्टिंग बहुत कम हो रही थी । प्रारंभिक 10 दिनो में टेस्टिंग मात्र 44000 के आसपास हुई थी। जिसकी संख्या अब 200000 से उपर की हो गई है । इस कारण से भी कोरोना के प्रकरण ज्यादा सामने आ रहे है । यधपि यह टेस्टिगं अभी भी बहुत कम हैं। अतः ऐसी स्थिति में कोरोना (कोविड19) को रोकने के लिये सम्पूर्ण देश मंे लाॅकडाउन बढाया जाना क्या आर्थिक कोरोना वायरस को जन्म तो नही दे देगा, यह एक बडा चिंतनीय विचारणीय प्रश्न हेै ?
देश को कोरोना के गडढे से निकालने के लिये किये गये प्रयासों से आंषिक रूप से उत्पन्न आर्थिक अर्थव्यवस्था को सकंट में डालकर उसे कमजोर करके क्या हम एक दूसरे सकंट के लिये गडडा तो नहीं खोद रहे हेै ? इसका एक कारण प्रारम्भ से ही केन्द्रीय व राज्य सरकारों ने ‘‘कोरोना बीमारी‘‘ को ध्यान मंे रखकर बीमारी के रोकथाम के लिये ‘‘सिर्फ‘‘ (एक्सक्लूजीव) के बजाए अधिकतम प्राथमिकता दे कर कार्य करतें व साथ में होने वाले आर्थिक दुष्प्रभाव को ध्यान में रखते हुये स्वास्थ्य व आर्थिक दोनों द्रष्टि से संयुक्त कदम उठाये गये होते तो शायद आर्थिक अर्थव्यवस्था के बादल की आशंका नहीं आती । प्रधानमंत्री जी ने स्वयं स्वीकार किया है कि जान है तो जहान हैं के बाद अब आगे जान है व जहान भी हैं के मंत्र को अपनाया जायेगंा अतः आज सरकार को कोरोना को रोकने के लिए उठाये गये समस्त आवश्यक कदमों के साथ साथ इस बात पर भी विचार करना होगा कि वे कदम इस तरह से उठाये जाये जिससे अर्थव्यवस्था पर कम से कम विपरीत प्रभाव पडें । यह तभी सम्भव है, जब हम इस आर्थिक पहलु को ध्यान में रखते हुये साथ में लेकर स्वास्थ संबधी बीमारी के बावत आवश्यक कदम उठायेगें । यदि सरकार प्रथम दिन से ही पूरे देश में नाॅका बंदी लागू ना कर सिर्फ उन जिलों में ही लाॅकबंदी लागू करती जहां कोरोना के प्रकरण पाये गये है, तथा वहां करफयू लागू कर उसका कठोरता से पालन करवाया जाता तो वहां पर आवश्यक रूप से निर्माण से लेकर उत्पादन की विभिन्न उत्पादक गतिविधियाॅ चलती रही जिससे देश को आर्थिक स्थिति को गर्त में जाने से रोका जा सकता है ।
अतः अब सरकार को 14 अप्रैल 2020 के बाद नागरिकों को जीवन व आर्थिक बरबादी दोनों से बचाने के लिये पूरे देश में लाॅकबंदी को बढाया जाना उचित कदम नहीं होगा बल्कि एक मात्र सार्थक कदम यह होगा कि सरकार पूरे देश में जहां कहीं भी कोरोना के मरीज पाये गये है उसके आस पास के क्षेत्र को हाॅटस्पाॅट घोषित कर वहां करफयू घोषित कर दिया द्रढता से लागू करवाया जावें व शेष भारत को लाकडाउन से अनुशासित रूप से मुक्त कर देना चाहिये अर्थात प्रत्येक कोरोना मुक्त जिला (728 जिले में से 354 जिले को छोड़कर) शेष को घर परिवार मान कर एक इकाई घोषित कर लाकडाउन से मुक्त कर देना चाहिये ताकि निर्माण एवं उत्पादन की गतिविधियां, ट्रासपोर्टेशन इत्यादि पर प्रभावी नियंत्रण के साथ प्रारम्भ हो सकें । देश के नागरिकांे को भी सरकार के इस नियत्रण को प्र्रभावी बनाने के लिये पूर्ण सफलता के साथ सक्रिय सहयोग देना चाहिये, तभी हम इस बीमारी से उत्पन्न आर्थिक संकट से कम प्रभावित होते हुये सफलता पूर्वक कम समय में इससे मुक्ती पा सकते है ।
सरकार को लाकडाउन पर विचार करते समय इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिये कि असंगठित क्षेत्र के देश के 40 करोड मजदूरो में से लगभग आधे 20 करोढ तिहाडी मजदूर,हाथ ठेला, रिक्षा चालक आदि जिनका रारकार की किसी भी योजना में समस्त प्रयासो के बाजूद आज भी पंजीयन नहीं है सब सरकारी सहायता पाने से वंचित रहेगें साथ ही आज भी वर्तमान सिस्टम प्रणाली में सरकारी सहायता हितधारियों में कितने प्रतिशत तक पहुचती है, इसके आकडे लिखने की आवश्यकता नहीं है। सामान्यतया ऐसे लोगों के जीवन यापन पर तो सत्ता में लगे गैर सरकारी सहायता समूहों का भी ध्यान नहीं जाता है । अतः इस प्रकार के लोगों का जीवन बचाने के लिये अनुशासित रूप से लाॅकडाउन का समाप्त किया जाना आवश्यक है ।

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