■■■■■ महाराष्ट्र प्रदेश के नाशिक जिले में स्थित त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग में है पितृ दोष निवारण की अद्भुत क्षमता ■■■■■■■

●●त्रयम्बकेश्वर मंदिर का रहस्य”●● “★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भारत में नासिक शहर से 28 किलोमीटर और नासिक रोड से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर त्रयम्बकेश्वर तहसील के त्रंबक शहर में बना हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जिन्हें भारत में सबसे पवित्र और वास्तविक माना जाता है। त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की सबसे अद्भुत और असाधारण बात तो यह है कि इसके तीन मुख(सर) हैं। एक भगवान ब्रहमा, एक भगवान विष्णु, और एक भगवान रुद्र। इस लिंग के चारों ओर एक रत्नजडित मुकुट रखा गया है जिसे त्रिदेव के मुखोटे के रुप में रखा गया है। कहा जाता है कि यह मुकुट पांडवों के समय से यहीं पर है। इस मुकुट में हीरा, पन्ना और कई बेशकीमती रत्न जुड़े हुए हैं।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर में इसको सिर्फ सोमवार के दिन 4 से 5 बजे तक दिखाया जाता है। यह मंदिर ब्रह्मगिरी पर्वत के तलहटी में स्थित है।
गोदावरी नदी के किनारे बने त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है। इस मंदिर के पंचकोशी में कालसर्प शांती त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबली आदि पूजा कराई जाती है। जिन का आयोजन भक्तगण अलग-अलग मनोकामना को पूर्ण करने के लिए करवाते हैं।

इस प्राचीन मंदिर का पुनः निर्माण तीसरे पेशवा बालासाहेब अर्थात नानासाहेब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार सन 1755 में शुरू हुआ था, जिस काम का अंत बाद 1786 में संपन्न हुआ। तथ्यों के मुताबिक इस भव्य प्राचीन मंदिर का निर्माण कार्य में लगभग 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जिसे उस समय काफी बड़ा रकम माना जाता था।
त्रयम्बकेश्वर मंदिर का भव्य इमारत सिंधु आर्यशैली का अद्भुत नमूना है। इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह है, जिसमें प्रवेश करने के पश्चात शिवलिंग के सिर्फ आंख ही दिखाई देती है, लिंग नहीं। यदि ध्यान से देखा जाए तो आगे के भीतर एक 1 इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन तीनो लिंगो को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अवतार माना जाता है।
प्रातः काल में होने वाले पूजा के बाद इस आज्ञ पर पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है। त्रयम्बकेश्वर मंदिर परिसर में कुंड है ‘कुशावर्त’, जो गोदावरी नदी का स्रोत है। कहा जाता है कि ब्रम्हगिरी पर्वत से गोदावरी बार-बार लुप्त हो जाया करती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बांध दिया था। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा पानी रहता है। इस कुंड को कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव-अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।
शिवपुराण के अनुसार ब्रम्हगिरी पर्वत के चोटी तक पहुंचने के लिए 700 चौड़ी सीढ़ियां बनाई गई है। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के उपरांत रामकुंड और लक्ष्मण कुंड मिलते हैं। और शिखर के ऊपर पहुंचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन प्राप्त होते हैं। चलिए अब हम आपको त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी हुई पौराणिक कथाओं के बारे में बतलाते हैं। कि आखिर भगवान शिव त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां उत्पन्न क्यों हुए
पुराणों के अनुसार एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्नियां किसी बात पर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से नाराज हो जाती है। उन सभी पत्नियों ने अपने पति को गौतम ऋषि का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके लिए भगवान गणेश की आराधना की उनकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उनसे वर मांगने को कहा। उन ब्राह्मणों ने कहा प्रभु किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दीजिए। गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी।
तब गणेश जी ने एक दुर्बल गाय का रूप धर के ऋषि गौतम के खेत में जाकर फसल खाने लगे। गाय को फसल खाते देख ऋषि गौतम ने हाथ में डंडा लेकर उसे उस गाय को वहां से भगाने लगे। उनके डंडे का स्पर्श होते हैं गाय वहीं गिर कर मर गई। उस समय सारे ब्राह्मण एकत्रित होकर गौ हत्यारे कह कर ऋषि गौतम का अपमान करने लगे। ऐसी विषम परिस्थिति को देखकर गौतम ऋषि उन ब्राह्मणों से प्रायश्चित और उधार का उपाय पूछा। तब उन्होंने कहा गौतम तुम अपने पाप को सर्वत्र बताते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करो फिर लौटकर यहां 1 महीने तक व्रत करो। इसके बाद ब्रम्हगिरी का 101 बार परिक्रमा करो तभी तुम्हारी शुद्धि होगी। अथवा यहां गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग से भगवान शिवजी की आराधना करो। इसके बाद फिर से गंगा जी में स्नान करके इस ब्रह्मगिरी के 11 बार परिक्रमा करो। फिर 100 घरों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।

उसके बाद भी गौतम ऋषि ने सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णता तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने कहा भगवान आप मुझे गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दीजिए। भगवान शिव ने कहा गौतम तुम सर्वदा निष्पाप हो। गौ हत्या का अपराध तुम पर पर छल पूर्वक लगाया गया था। ऐसा करने के लिए तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं। इस पर महर्षि गौतम ने कहा उन्हीं के उस कार्य से मुझे आपके दुर्लभ दर्शन प्राप्त हुए हैं। अब उन्हें मेरा परम समझ कर उन पर आप क्रोध ना करें। बहुत सारे ऋषि मुनियों और देवगन ने वहां उपस्थित होकर ऋषि गौतम बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा वहीं पर निवास करने की प्रार्थना की। फिर भगवान शिव ने उन सब की बात मानकर वहां त्रंबक ज्योतिर्लिंग के रूप मे वही स्थित हो गए।

त्रयम्बकेश्वर मंदिर में जब भगवान शिव की शाही सवारी निकाली जाती है तो वह दृश्य देखने लायक होता है। इस भ्रमण के समय त्रयम्बकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखोटे को पालकी में बिठाकर गांव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त घाट तीर्थ में स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखोटे को वापस मंदिर में लाकर हीरे जड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्रंबक महाराज के राज्य अभिषेक जैसा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है।

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *