आज दिन सोमवार 18 मार्च 2019 प्रदोष……

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क्षिण भारत में प्रदोष व्रत को प्रदोषम के नाम से जाना जाता है और इस व्रत को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है जिसमे से एक शुक्ल पक्ष के समय और दूसरा कृष्ण पक्ष के समय होता है। कुछ लोग शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के प्रदोष के बीच फर्क बताते हैं।

प्रदोष का दिन जब सोमवार को आता है तो उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को आने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं और जो प्रदोष शनिवार के दिन आता है उसे शनि प्रदोष कहते हैं।

2019 में आने वाले प्रदोष की सूची…….

प्रदोष पूजा का समय
०३ जनवरी (गुरु) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १७:५० से २०:३०
१९ जनवरी (शनि) शनि प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:०१ से २०:४०
०२ फरवरी (शनि) शनि प्रदोष व्रत (कृष्ण) १८:११ से २०:४७
१७ फरवरी (रवि) प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:२० से २०:५२
०३ मार्च (रवि) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १८:२७ से २०:५६
१८ मार्च (सोम) सोम प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:३३ से २०:५८
०२ अप्रैल (मंगल) भौम प्रदोष व्रत (कृष्ण) १८:३९ से २०:५९
१७ अप्रैल (बुध) प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:४५ से २१:०१
०२ मई (गुरु) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १८:५१ से २१:०४
१६ मई (गुरु) प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:५७ से २१:०८
३१ मई (शुक्र) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १९:०४ से २१:१२
१४ जून (शुक्र) प्रदोष व्रत (शुक्ल) १९:१० से २१:१७
३० जून (रवि) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १९:१३ से २१:२०
१४ जुलाई (रवि) प्रदोष व्रत (शुक्ल) १९:१२ से २१:२०
२९ जुलाई (सोम) सोम प्रदोष व्रत (कृष्ण) १९:०७ से २१:१७
१२ अगस्त (सोम) सोम प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:५८ से २१:१२
२८ अगस्त (बुध) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १८:४५ से २१:०२
११ सितम्बर (बुध) प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:३१ से २०:५२
२६ सितम्बर (गुरु) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १८:१६ से २०:४१
११ अक्टूबर (शुक्र) प्रदोष व्रत (शुक्ल) १८:०२ से २०:३०
२५ अक्टूबर (शुक्र) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १९:०८ से २०:२२
०९ नवम्बर (शनि) शनि प्रदोष व्रत (शुक्ल) १७:४१ से २०:१७
२४ नवम्बर (रवि) प्रदोष व्रत (कृष्ण) १७:३७ से २०:१५
०९ दिसम्बर (सोम) सोम प्रदोष व्रत (शुक्ल) १७:३८ से २०:१८
२३ दिसम्बर (सोम) सोम प्रदोष व्रत (कृष्ण) १७:४३ से २०:२४
(कृष्ण) – कृष्ण पक्ष प्रदोष
(शुक्ल) – शुक्ल पक्ष प्रदोष

जिस दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है उसी दिन प्रदोष का व्रत किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारम्भ हो जाता है। जब त्रयोदशी तिथि और प्रदोष साथ-साथ होते हैं (जिसे त्रयोदशी और प्रदोष का अधिव्यापन भी कहते हैं) वह समय शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के समय शिवजी प्रसन्नचित मनोदशा में होते हैं। प्रदोष के दिनों के साथ समय भी सूचीबद्ध करता है जो कि शिव पूजा के लिए उपयुक्त समय है।

स्थान आधारित प्रदोष व्रत के दिन…..

यह जानना महत्वपूर्ण है कि प्रदोष के व्रत का दिन दो शहरों के लिए अलग-अलग हो सकता है। यह जरुरी नहीं है कि दोनों शहर अलग-अलग देशों में हों क्योंकि यह बात भारत वर्ष के दो शहरों के लिए भी मान्य है। प्रदोष के लिए व्रत का दिन सूर्यास्त के समय पर निर्भर करता है और जिस दिन सूर्यास्त के बाद त्रयोदशी तिथि प्रबल होती है उस दिन प्रदोष का व्रत किया जाता है। इसीलिए कभी कभी प्रदोष का व्रत त्रयोदशी तिथि के एक दिन पूर्व, द्वादशी तिथि के दिन पड़ जाता है।

क्योंकि सूर्यास्त का समय सभी शहरों के लिए अलग-अलग होता है इसीलिए प्रदोष के व्रत की तालिका का निर्माण शहर की भूगोलिक स्थिति को लेकर करना अत्यधिक जरुरी है। पञ्चाङ्ग की तालिका हरेक शहर की भूगोलिक स्थिति को लेकर तैयार की जाती है इसीलिए यह ज्यादा शुद्ध है। अधिकतर पञ्चाङ्ग सभी शहरों के लिए एक ही तालिका को सूचीबद्ध करते हैं इसीलिए वो केवल एक ही शहर के लिए मान्य होते हैं।

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