आपने अकसर टीवी में कैराना को लेकर एक विज्ञापन देखा होगा जिसमें कैराना का गोला जो कि कांटेदार होता है आदमी के पीछे पीछे दौड़ने लगता है। ऐसे ऐड को देखकर एक आम आदमी के मन में करोना का जो काल्पनिक साइज उभरता है वह उसके वास्तविक साइज से खरबों गुणा बड़ा है । करोना वायरस का एक्चुअल साइज साइंस का स्टूडेंट आसानी समझ सकता है या समझता है । आम आदमी को समझाने के लिए हम यूं समझा सकते हैं कि आंखों से दिखने वाला सबसे छोटा कण का 1000 वां भाग अथवा सुई के छेद के आकार के साइज़ से एक अरब गुणा छोटा भाग बैक्टीरिया होता है, और एक बैक्टीरिया का कई हजारों गुणा छोटा भाग यानी
.लगभग.०००4 माइक्रोन साइज़ का छोटा कण कॅरोना के साइज जैसा होता है। जिसका वैज्ञानिक साइज एक कोशिका के बराबर भी नहीं होता है क्योंकि मानव मांस का सबसे छोटा भाग जो की एक कोशिका कहलाता है । उस सेल में से सिर्फ डीएनए का भाग वाले कोरोना को रोकने के लिए हम लोग मास्क पहनने का आयोजन कर रहे हैं जिसमें उसके पास होने की संभावना 100% है ।इसके सापेक्ष में हमारी अबोध और निश्छल आदिवासी जंगली संस्कृति ने एक पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक मास्क बना लिया है जिसमें से वायरस का पास होना असंभव है जिसका मूल्य आपके शहरी गैलरी मास्क से की तुलना में 0 है जहां शहर में यह मास्क 30 से लेकर ₹500 तक में खरीद रहे हैं वहां इससे बेहतरीन “हरबो मास्क” आदिवासी फ्री में जंगलों से प्राप्त कर रहे हैं….
“■■■■■■■विशाल गोल,, काँटेदार दिखने वाले कॅरोना वॉयरस का वास्तविक साइज़ एक माइक्रॉन सेभी कम है■■■ ■■■■■■■■■■■■■■■■
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