तिथियों की घटबढ़ के विवाद से ग्रसित हरतालिका व्रत कुछ जगह रविवार को एवम कई स्थानों में सोमवार को मनाया जा रहा है। गृहणियों एवम कुँवारियों द्वारा देवत्व से परिपूर्ण महादेव शिव सृद्श्य पति पाने की अभिलाषा से किये जाने वाला निर्जला व्रत “हरतालिका” व्रत का इंतजार महिलाये पूरे वर्ष करती है।यह व्रत माँ पार्वती की उपासना के अंतिम चरण का प्रतीक है।शिवपुराण के अनुसार महादेव शिव को पति के रूप में वरण करने की अभिलाषा से नारदमुनि के मार्गनिर्देशन में पार्वतीजी ने वन में कठोर उपासना की थी ।उपासना के अंतिम चरण में पार्वतीजी ने पहले केवल पत्ते खाकर उपासना की और अंत मे निर्जल उपासना कर तीज के दिन महादेव को प्रसन्न कर अपना इच्छित वर प्राप्त किया था।इसी उपासना व्रत के प्रतीक स्वरूप तीज के दिन महिलाएं निर्जला उपवास कर शिव पार्वती का विवाह संपन्न कर रात्रि जागरण कर भजन गीत एवम नृत्य संगीत का आयोजन कर अपने वैवाहिक जीवन की सम्पन्नता का वरदान मांगती है। और कुंवारियां अपने मनवांछित वर प्राप्त करने की अर्जी शिवपार्वती के चरणो मे पेश करती है। इस व्रत का आरम्भ एक दिन पूर्व रात्रि 12बजे के पूर्व ककड़ी खाकर मुँह को शुद्ध करने से किया जाता है।ककड़ी खाने कर मुख शुद्ध करने के पश्चात फिर अगला पूरा दिन एवम संपूर्ण रात्रि निर्जल उपवास महिलाओ द्वारा किया जाता है।साथ ही उपवास के कुछ कठोर नियमो का दृढ़ता से पालन किया जाता है ।कठोर नियमो में यह भी शामिल है कि महिलाएं अगले24 घण्टे जब तक उपवास रहेगा वो सो नही सकती है जल और चाय ग्रहण करना भी पूर्णतया वर्जित रहता है साथ ही शिव पार्वती विवाह का उत्सव मनाना भी अनिवार्य है ।