सारे देवों में सिर्फ भगवान भोले शंकर को ही महादेव की उपाधि से विभूषित किया गया क्योंकि यही ऐसे देव है जो देवता राक्षस गंधर्व यक्ष किन्नर भूत प्रेत डाकिनी पिशाचिनी भैरवी जैसी अन्य जातियों के एकमात्र आराध्य हैं जो सभी जाति के भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और अन्य देवताओं की तुलना में इनकी मांग बड़ी सादगी भरी है जैसे सुगन्धित फूलों के बजाय ये मात्र आंकड़े के फूल से नवाजे जाते है।इन्हें छप्पन भोग की नही अपितु साधारण फलों और खासकर श्रीफल मात्र से प्रसन्नता प्राप्त होती है।इन्हें कोई भी आडम्बर के बजाय निश्छल प्रेम में आसानी से बांधा जा सकता है।लेकिन इनकी महादेव की उपाधि भी एक समय समाज को रास नही आई थी।
भारतीय सांस्कृति में एक दौर ऐसा भी आया है जिसे शेव-वैष्णव “सिर फुटै वल” का काला इतिहास जुड़ गया है:; जिसमे शिव भक्त एवं विष्णु भक्त अपने अपने अराध्य को श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास में आपस में उग्र रूप में लड़ते रहते थे।तब उस युग के श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने “ॐ जय शिव ओमकारा” नामक आरती का निर्माण कर सनातन भक्तो को यह सन्देश दिया की “प्रणवाक्षर में ये तीनो एका ही है” आइये जानिए कैसे………… भगवान शिव को कोई रुद्र तो कोई भोलेनाथ के नाम से पुकारता है. भगवान शिव की पूजा में विशेष नियम नहीं होते और इनकी पूजा विधि के मंत्र भी बेहद आसान होते हैं. भगवान शिव की आराधना करते समय उनकी आरती का गान करने से पूजा संपन्न मानी जाती है.
शिवजी की आरती-
ॐ जय शिव ओंकारा….
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे|
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें|
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी|
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा….
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें|
सनकादिक, ब्रम्हादिक, भूतादिक संगें||
ॐ जय शिव ओंकारा…
कर के मध्य कमड़ंल चक्र, त्रिशूल धरता|
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका|
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी|
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें|
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा.देखिये आरती की दूसरी पंक्ति में ब्रह्मा विष्णु सदाशिव की महिमा प्रारम्भ हो जाती है। 1 एकानन चतुरानन वाली पंक्ति में त्रिदेव के शीशो का विवरण है।। 2 हंसासन गरुड़ासन…. पंक्ति में त्रिदेव के वाहनों का बखान किया गया है…. 3दोभुज…. इस पंक्ति में त्रिदेवो के हाथों का विवरण है…….. 3 अक्षमाला वरमाला..में ब्रह्मा विष्णु एवं महादेव के गले में सुशोभित होने वाले हारो का विवरण है,,,,,,
4 श्वेताम्बर ब्रह्माजी, पीताम्बर विष्णुजी एवम बाघाम्बर शिवजी धारण करते है … शोंकादिक ऋषी समूह विष्णुजी ब्रह्मादिक भक्त समूह ब्रह्माजी एवं शिवजी के परम भक्तो में “भूतादिक “अर्थात भूत पिशाच ,य क्ष गन्धर्व कुष्मांड से लेकर डाकिनी पिशाचनी सहित मानवो की अनन्य जातियो का विवरण है,,,,,,, 5कर में श्रेष्ट कमंडल ,,,
[ इस पंक्ति में त्रिदेव के हाथो में धारण किये जाने वाले अस्त्रो का विवरण है जिसमे कमण्डल ब्रह्माजी, चक्र विष्णु एवं त्रिशूल धारण महादेवजी को सुुशोभित है 6 इस पंक्ति में त्रिदेव को जगहर्ता शुभकर्ता एवं पालन कर्ता के लिए क्रमशः शिवजी ब्रह्माजी एवं विष्णुजी को जिम्मेदार मांना गया है,,,,.
अंततः “प्राणवाक्ष र” अर्थात ॐ यानि ब्रह्मांड में त्रिदेव को एक ही मानने का सन्देश दिया गया है..तीनो देव है इस श्रष्टि के संचालक है….!!!!!
सारे देवों में सिर्फ भगवान भोले शंकर को ही महादेव की उपाधि से विभूषित किया गया क्योंकि यही ऐसे देव है जो देवता राक्षस गंधर्व यक्ष किन्नर भूत प्रेत डाकिनी पिशाचिनी भैरवी जैसी अन्य जातियों के एकमात्र आराध्य हैं जो सभी जाति के भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और अन्य देवताओं की तुलना में इनकी मांग बड़ी सादगी भरी है जैसे सुगन्धित फूलों के बजाय ये मात्र आंकड़े के फूल से नवाजे जाते है।इन्हें छप्पन भोग की नही अपितु साधारण फलों और खासकर श्रीफल मात्र से प्रसन्नता प्राप्त होती है।इन्हें कोई भी आडम्बर के बजाय निश्छल प्रेम में आसानी से बांधा जा सकता है।लेकिन इनकी महादेव की उपाधि भी एक समय समाज को रास नही आई थी।
भारतीय सांस्कृति में एक दौर ऐसा भी आया है जिसे शेव-वैष्णव “सिर फुटै वल” का काला इतिहास जुड़ गया है:; जिसमे शिव भक्त एवं विष्णु भक्त अपने अपने अराध्य को श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास में आपस में उग्र रूप में लड़ते रहते थे।तब उस युग के श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने “ॐ जय शिव ओमकारा” नामक आरती का निर्माण कर सनातन भक्तो को यह सन्देश दिया की “प्रणवाक्षर में ये तीनो एका ही है” आइये जानिए कैसे………… भगवान शिव को कोई रुद्र तो कोई भोलेनाथ के नाम से पुकारता है. भगवान शिव की पूजा में विशेष नियम नहीं होते और इनकी पूजा विधि के मंत्र भी बेहद आसान होते हैं. भगवान शिव की आराधना करते समय उनकी आरती का गान करने से पूजा संपन्न मानी जाती है.
शिवजी की आरती-
ॐ जय शिव ओंकारा….
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे|
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें|
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी|
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा….
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें|
सनकादिक, ब्रम्हादिक, भूतादिक संगें||
ॐ जय शिव ओंकारा…
कर के मध्य कमड़ंल चक्र, त्रिशूल धरता|
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका|
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी|
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें|
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा.देखिये आरती की दूसरी पंक्ति में ब्रह्मा विष्णु सदाशिव की महिमा प्रारम्भ हो जाती है। 1 एकानन चतुरानन वाली पंक्ति में त्रिदेव के शीशो का विवरण है।। 2 हंसासन गरुड़ासन…. पंक्ति में त्रिदेव के वाहनों का बखान किया गया है…. 3दोभुज…. इस पंक्ति में त्रिदेवो के हाथों का विवरण है…….. 3 अक्षमाला वरमाला..में ब्रह्मा विष्णु एवं महादेव के गले में सुशोभित होने वाले हारो का विवरण है,,,,,,
4 श्वेताम्बर ब्रह्माजी, पीताम्बर विष्णुजी एवम बाघाम्बर शिवजी धारण करते है … शोंकादिक ऋषी समूह विष्णुजी ब्रह्मादिक भक्त समूह ब्रह्माजी एवं शिवजी के परम भक्तो में “भूतादिक “अर्थात भूत पिशाच ,य क्ष गन्धर्व कुष्मांड से लेकर डाकिनी पिशाचनी सहित मानवो की अनन्य जातियो का विवरण है,,,,,,, 5कर में श्रेष्ट कमंडल ,,,
[ इस पंक्ति में त्रिदेव के हाथो में धारण किये जाने वाले अस्त्रो का विवरण है जिसमे कमण्डल ब्रह्माजी, चक्र विष्णु एवं त्रिशूल धारण महादेवजी को सुुशोभित है 6 इस पंक्ति में त्रिदेव को जगहर्ता शुभकर्ता एवं पालन कर्ता के लिए क्रमशः शिवजी ब्रह्माजी एवं विष्णुजी को जिम्मेदार मांना गया है,,,,.
अंततः “प्राणवाक्ष र” अर्थात ॐ यानि ब्रह्मांड में त्रिदेव को एक ही मानने का सन्देश दिया गया है..तीनो देव है इस श्रष्टि के संचालक है….!!!!!
सारे देवों में सिर्फ भगवान भोले शंकर को ही महादेव की उपाधि से विभूषित किया गया क्योंकि यही ऐसे देव है जो देवता राक्षस गंधर्व यक्ष किन्नर भूत प्रेत डाकिनी पिशाचिनी भैरवी जैसी अन्य जातियों के एकमात्र आराध्य हैं जो सभी जाति के भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और अन्य देवताओं की तुलना में इनकी मांग बड़ी सादगी भरी है जैसे सुगन्धित फूलों के बजाय ये मात्र आंकड़े के फूल से नवाजे जाते है।इन्हें छप्पन भोग की नही अपितु साधारण फलों और खासकर श्रीफल मात्र से प्रसन्नता प्राप्त होती है।इन्हें कोई भी आडम्बर के बजाय निश्छल प्रेम में आसानी से बांधा जा सकता है।लेकिन इनकी महादेव की उपाधि भी एक समय समाज को रास नही आई थी।
भारतीय सांस्कृति में एक दौर ऐसा भी आया है जिसे शेव-वैष्णव “सिर फुटै वल” का काला इतिहास जुड़ गया है:; जिसमे शिव भक्त एवं विष्णु भक्त अपने अपने अराध्य को श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास में आपस में उग्र रूप में लड़ते रहते थे।तब उस युग के श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने “ॐ जय शिव ओमकारा” नामक आरती का निर्माण कर सनातन भक्तो को यह सन्देश दिया की “प्रणवाक्षर में ये तीनो एका ही है” आइये जानिए कैसे………… भगवान शिव को कोई रुद्र तो कोई भोलेनाथ के नाम से पुकारता है. भगवान शिव की पूजा में विशेष नियम नहीं होते और इनकी पूजा विधि के मंत्र भी बेहद आसान होते हैं. भगवान शिव की आराधना करते समय उनकी आरती का गान करने से पूजा संपन्न मानी जाती है.
शिवजी की आरती-
ॐ जय शिव ओंकारा….
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे|
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें|
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी|
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा….
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें|
सनकादिक, ब्रम्हादिक, भूतादिक संगें||
ॐ जय शिव ओंकारा…
कर के मध्य कमड़ंल चक्र, त्रिशूल धरता|
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका|
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी|
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें|
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें॥
ॐ जय शिव ओंकारा…
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा.देखिये आरती की दूसरी पंक्ति में ब्रह्मा विष्णु सदाशिव की महिमा प्रारम्भ हो जाती है। 1 एकानन चतुरानन वाली पंक्ति में त्रिदेव के शीशो का विवरण है।। 2 हंसासन गरुड़ासन…. पंक्ति में त्रिदेव के वाहनों का बखान किया गया है…. 3दोभुज…. इस पंक्ति में त्रिदेवो के हाथों का विवरण है…….. 3 अक्षमाला वरमाला..में ब्रह्मा विष्णु एवं महादेव के गले में सुशोभित होने वाले हारो का विवरण है,,,,,,
4 श्वेताम्बर ब्रह्माजी, पीताम्बर विष्णुजी एवम बाघाम्बर शिवजी धारण करते है … शोंकादिक ऋषी समूह विष्णुजी ब्रह्मादिक भक्त समूह ब्रह्माजी एवं शिवजी के परम भक्तो में “भूतादिक “अर्थात भूत पिशाच ,य क्ष गन्धर्व कुष्मांड से लेकर डाकिनी पिशाचनी सहित मानवो की अनन्य जातियो का विवरण है,,,,,,, 5कर में श्रेष्ट कमंडल ,,,
[ इस पंक्ति में त्रिदेव के हाथो में धारण किये जाने वाले अस्त्रो का विवरण है जिसमे कमण्डल ब्रह्माजी, चक्र विष्णु एवं त्रिशूल धारण महादेवजी को सुुशोभित है 6 इस पंक्ति में त्रिदेव को जगहर्ता शुभकर्ता एवं पालन कर्ता के लिए क्रमशः शिवजी ब्रह्माजी एवं विष्णुजी को जिम्मेदार मांना गया है,,,,.
अंततः “प्राणवाक्ष र” अर्थात ॐ यानि ब्रह्मांड में त्रिदेव को एक ही मानने का सन्देश दिया गया है..तीनो देव है इस श्रष्टि के संचालक है….!!!!!