अभी इसी क्षण जब मै
बिना मेसूस किए सांस ले रहा हूं
मुझे कोई विशेष प्रयास भी नहीं करना पड़ रहा
और ये एक अचेतन प्रक्रिया है
वहीं कहीं इस दुनिया में कितने लोगों की सांस उखड़ रही होगी।
किसी ने अभी इसी क्षण दम तोड दिया होगा ।
हां इतने बड़े विश्व की आबादी में ये सब एक आंकड़ा है। ये तो प्रकृति का नियम है।
जन्म – मृत्यु ,पर अभी इस महामारी ने बहोत कुछ बदल दिया
अभी तो मानव जाती समझ ही रही है कि क्या करना चाहिए क्या नहीं।
और उनकी सोच जितना इस समस्या को समझने का प्रयास करती है उतना ही ये समस्या अपने रूप बदल रही है।इतने आधुनिकता विज्ञान और संसाधन सब हारते हुए दिख रहे है।
मनुष्य जो अपने आप को इस प्रकृति का मालिक समझ बैठा था। वो अब जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है। सब कुछ बदलना होगा
चिकित्सा पद्धति , सिटी प्लानिंग , व्यापार के तरीके , विद्यालय , कॉलेज, आध्यात्मिक ,धार्मिक सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सभी मापदंडों की फिर से संरचना होगी।
मनुष्य को फिर साबित करना होगा कि वो survival of fittest
और nature’s selection
दोनो ही कंडीशन पे खरा उतरेगा।और ये असंभव भी नहीं है पर अब ये मनुष्य के आत्म सय्यम की ही परीक्षा है । कि वो एक बार फिर से प्रकृति का भरोसा कैसे जीत के वापस अपना जीवन आसान बना सकता है। या फिर वही धरती का शोषण कर नदी ,पहाड़ ,झरने ,जंगल ,वन उपवन पशु ,पक्षी समुद्री जीवों का मालिक बन उन्हें जैसे चाहे वैसे
अपने अनुसार ढालने की कोशिश करता रहेगा।
यूं कहें कि उसे ही प्रकृति के इस इशारे के अनुसार खुद को ढालना होगा। ये एक अति विश्वास नहीं अपितु एक शिव संकल्प ही है कि
मनुष्य यदि पुरुष तत्व के पुरुषार्थ और प्रकृति तत्व के प्रकोप को सही अनुपात में स्थिर रख सके तो
ये काली रात छट जाएगी और फिर एक नया सवेरे का उदय होगा।